ये हैं औरंगाबाद के शशिकांत जो मेटल स्क्रैप तथा बेकार पड़ी कबाड़ की वस्तुओं से बहुमूल्य और विष्मयकारी दुनिया की रचना कर रहे हैं।धातु के टुकड़ों तथा कबाड़ की चीज़ों जैसे कि नट-बोल्ट,बैरिंग ,साईकल की चेन आदि से बनाई गईं इनकी कलाकृतियां पटना के ईको पार्क समेत देश के कई प्रमुख स्थलों की शोभा बढ़ा रहीं हैं।इलाहाबाद, अबका प्रयागराज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद शशिकांत जमशेदपुर में शिफ्ट कर गये ।वहीं इन्होंने शौकिया तौर पर कबाड़ से कलाकृतियों को बनाने की शुरुआत की ।लोगों ने जमकर तारीफ की तो इनके हौंसले बुलंद हुए और बड़ी-बड़ी कलाकृतियां बनानी शुरू कर दी।बाद में यह शौक व्यवसाय में तब्दील हो गया।
वही अगर हम ये कहे की छुपा-रुस्तम निकले शशिकांत सुर्खियों में तब आये जब औरंगाबाद के सत्येंद्र नारायण सिन्हा पार्क में इनके हाथों बनी घोड़े की एक कलाकृति स्थापित की गयी।डीएम सौरभ जोरवाल को जैसे ही इसके शिल्पकार के बारे में पता चला ,उनकी हौंसला अफजाई के लिये उनके घर पहुंच गये।तब जाकर औरंगाबाद के लोगों को पता चल सका कि अपना शशिकांत तो बड़ा हुनरबाज है।वैसे तो शशिकान्त की इच्छा है कि चंडीगढ़ के रॉक गार्डन की तरह पटना में भी एक पार्क खुले जहां बस कलाकृतियाँ ही कलाकृतियाँ हों।जिलाधिकारी ने उनके फन को और भी आगे ले जाने के लिए हरसंभव मदद की बात कही।