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भाजपा में शामिल अपर्णा यादव, अखिलेश ने किया बीजेपी पर तंज

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समाजवादी पार्टी पर सबसे ज्यादा आरोप परिवारवाद को लेकर लगते रहे हैं. सपा पर परिवारवाद का आरोप ही 2017 में बीजेपी का सबसे बड़ा मुद्दा था. 2017 में चाचा-भतीजे की लड़ाई में शिवपाल यादव, अखिलेश यादव से अलग हो गए थे. परिवार की इस लड़ाई का फायदा बीजेपी को पहुंचा था. 2019 के लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी ने परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाया था
2022 के विधान सभा चुनाव से पहले अखिलेश ने सपा को नया नारा दिया- ‘नयी हवा है, नयी सपा है, युवाओं का साथ, बड़ों का हाथ’. इसी नारे के सहारे अखिलेश ने सपा के मेकओवर की तैयारी की. इसी रणनीति के तहत अखिलेश ने चाचा शिवपाल यादव की पार्टी के साथ सिर्फ़ गठबंधन किया और उनकी पार्टी का विलय नहीं किया. ताकि 2022 के चुनावों में परिवारवाद के आरोपों से बचा जा सके और अन्य नेताओं के चेहरों को भी आगे किया जाए.

यही कारण है कि इस बार अखिलेश ने अपर्णा और हरिओम यादव जैसे परिवार के नेताओं को टिकट देने से साफ़ मना कर दिया. जिसके बाद अपर्णा यादव और हरिओम यादव बीजेपी के साथ चले गए. अपर्णा यादव लखनऊ कैंट से टिकट मांग रही थीं, जबकि मुलायम सिंह के दूर के रिश्तेदार हरिओम यादव सिरसागंज सीट से टिकट मांग रहे थे. अपर्णा यादव को छोड़कर मुलायम सिंह यादव का पूरा परिवार समाजवादी पार्टी के साथ एकजुट है. आज अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि नेताजी ने अपर्णा को बहुत समझाया लेकिन वो नहीं मानीं.

हालांकि अपर्णा-हरिओम को छोड़ दें तो शिवपाल यादव के साथ आने के बाद अब मुलायम सिंह यादव का पूरा परिवार इस समय अखिलेश यादव के साथ है. दरअसल अखिलेश यादव सपा की छवि बदलने की कोशिश कर रहे हैं. सपा के ऊपर परिवारवाद और जातिवाद के ठप्पे को नयी सपा के माध्यम से हटाने की कोशिश कर रहे हैं. यही कारण है कि सपा परिवार से ज़्यादा टिकट नहीं दे रहे हैं और ग़ैर यादव ओबीसी और ब्राह्मण वोट बैंक पर फ़ोकस है
नई सपा में परिवार से ज़्यादा लोगों को टिकट नहीं देने की रणनीति पर अखिलेश यादव काम कर रहे हैं. अभी तक जो जानकारी मिल रही है, उसके मुताबिक़ अखिलेश यादव खुद विधान सभा चुनाव लड़ सकते हैं और उनके चाचा शिवपाल यादव भी विधानसभा चुनाव लड़ेगे. लेकिन शिवपाल यादव की खुद की पार्टी है प्रगतिशील समाजवादी पार्टी. इस तरह से अभी तक सपा से सिर्फ़ अखिलेश यादव ही परिवार से चुनाव लड़ते दिख रहे हैं.

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