राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ भानगढ़ का किला लोगों के लिए हमेशा से कोतूहल का विषय बना रहा है। भानगढ़ की कहानी रहस्यमयी और बड़ी ही रोचक है। 1573 में आमेर के राजा भगवंत दास ने भानगढ़ क़िले का निर्माण करवाया था। किले की बसावट के 300 सालों बाद तक ये आबाद रहा। 16वीं शताब्दी में राजा सवाई मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने भानगढ़ किले को अपना निवास बना लिया।
कहते हैं कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बहुत खुबसूरत थी। उस समय राजकुमारी खूबसूरती की चर्चा पूरे राज्य में थी। कई राज्यों से रत्नावती के लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकली। बाजार में वह एक इत्र की दुकान पर पहुंची और इत्र को हाथ में लेकर उसकी खूशबू सूंघ रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ दूरी सिंधु सेवड़ा नाम का व्यक्ति खड़ा हो कर राजकुमारी को निहार रहा था। सिंघीया उसी राज्य का रहने वाला था और वह काले जादू में महारथी था।
राजकुमारी के रूप को देख तांत्रिक मोहित हो गया था और राजकुमारी से प्रेम करने लग गया और राजकुमारी को हासिल करने के बारे में सोचने लगा। लेकिन रत्नावती ने कभी उसे पलटकर नहीं देखा।
जिस दुकान से राजकुमारी के लिए इत्र जाता था उसने उस दुकान में जाकर रत्नावती को भेजे जाने वाली इस की बोतल पर काला जादू कर उस पर वशीकरण मंत्र का प्रयोग किया। जब राजकुमारी को सच्चाई पता चल गई, तो उसने इत्र की शीशी पास ही एक पत्थर फेंक दी। इससे शीशी टूट गई और इत्र बिखर गया।
काला जादू होने के कारण पत्थर सिंधु सेवड़ा के पीछे हो लिया और उसे कुचल डाला। सिंधु सेवड़ा तो मर गया, लेकिन मरने से पहले उस तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जाएंगे और दुबारा जन्म नहीं लेंगे। उनकी आत्मा इस किले में ही भटकती रहेंगी। आज 21वीं सदी में भी लोगों में इस बात को लेकर भय है कि भानगढ़ में भूतों का निवास है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को खुदाई के बाद सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल रहा था। अब किला भारत सरकार की देख रेख में आता है। किले के चारों तरफ आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती है। एएसआई ने सूर्यास्त बाद किसी के भी यहां रुकने को प्रतिबंधित कर रखा है।