शिक्षा प्रणाली को समावेशी, गतिशील और आधुनिक होना चाहिए ताकि वह शिक्षा ग्रहण करने वालों के एक विविध समूह की बढ़ती जरूरतों एवं आकांक्षाओं को पूरा कर सके। इस प्रणाली को सामयिक और प्रासंगिक बने रहने के लिए अपने संबद्ध क्षेत्र में होने वाली प्रगति को अपनाने में समर्थ होना चाहिए। इस दृष्टि से, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) एक महान प्रवर्तक होने के साथ-साथ बेहद अशक्त बनाने वाली भी है। यदि हम सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के साथ कदम मिलाकर चलते हैं, तो यह हमारे लिए एक प्रवर्तक बन जाता है और यदि हम पिछड़ जाते हैं, तो यह हमें बेहद अशक्त बनाने वाला साबित हो जाता है। विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद, डिजिटल या आभासी शिक्षा दुनिया भर में सीखने – सिखाने के सबसे शक्तिशाली माध्यम के रूप में उभर रही है। ऑनलाइन शिक्षण की बदौलत शिक्षण संस्थानों के बंद रहने के कारण शिक्षा में होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सका। उच्च बैंडविड्थ इंटरनेट कनेक्टिविटी और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण संबंधी सीमाओं के बावजूद, ऑनलाइन शिक्षण ने शैक्षणिक सत्रों को शून्य होने से बचाने में मदद की और छात्रों के कीमती वर्ष बच गए। कोरोना महामारी ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को ऑनलाइन शिक्षण से जुड़े घटकों की प्रतिशतता को 20 से बढ़ाकर 40 करने के लिए प्रेरित किया। कई विश्वविद्यालयों ने इनफ्लिबनेट द्वारा अनुकूलित एलएमएस का सहारा लिया। इस प्रक्रिया में, शिक्षकों और छात्रों ने ऑनलाइन सीखने– सिखाने के मामले में काफी हद तक कुशलता हासिल की। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने मिश्रित शिक्षा के विनियमन से संबंधित एक मसौदा शिक्षाविदों के सुझावों के लिए अपलोड किया और विश्वविद्यालयों को ऑनलाइन पाठ्यक्रम पेश करने की अनुमति दी। शिक्षा मंत्रालय ने समानता, पहुंच, गुणवत्ता और सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में सुधार के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) से जुड़ी कई पहल शुरू की है। इनमें स्वयं, अर्पित, स्वयंप्रभा, एनपीटीईएल, एनडीएल, ई-पीजी पाठशाला, शोधगंगा, ई-शोधसिंधु, ई-यात्रा, शोध शुद्धि, स्पोकन ट्यूटोरियल, वर्चुअल लैब्स, विद्वान आदि जैसी पहल शामिल हैं। आभासी शिक्षा (वर्चुअल लर्निंग) का अधिकतम लाभ उठाने के लिए उपर्युक्त एवं नए प्रयासों में तेजी लाने तथा इसे और आगे बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है।
भविष्य में शिक्षा प्रणाली में होने वाले विकास का पूर्वानुमान लगाते हुए, केन्द्र सरकार ने 17 मई, 2020 को कई पहल की घोषणा की। इनमें दीक्षा (एक राष्ट्र-एक डिजिटल प्लेटफॉर्म), एक कक्षा-एक चैनल (कक्षा-बारहवीं तक), दिव्यांग छात्रों के लिए विशेष ई-सामग्री और उच्च शिक्षा के लिए रेडियो, सामुदायिक रेडियो एवं पॉडकास्ट और ई-ट्यूटरिंग के उपयोग समेत विविध पद्धतियों के माध्यम से डिजिटल शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री ई-विद्या कार्यक्रम का शुभारंभ शामिल हैं।
ये सभी कदम स्पष्ट रूप से यह दर्शाते हैं कि सरकार डिजिटल शिक्षा के मामले में एक बड़ी छलांग की तैयारी कर रही थी, जोकि अंततः 1 फरवरी, 2022 को श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा एक डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा के साथ साकार हुई। श्रीमती सीतारमण ने बताया कि इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य देश भर के छात्रों को उनके ‘हाथ’ में सीखने के व्यक्तिगत अनुभवों के साथ विश्वस्तरीय गुणवत्ता वाली सर्वव्यापी शिक्षा प्रदान करना है। इसे एक नेटवर्क पर आधारित हब एवं स्पोक मॉडल के आधार पर स्थापित किया जाएगा। इस मॉडल में, ज्ञान एक केन्द्रीकृत हब से शुरू होगा और डिजिटल तरीके से उपयोग के लिए स्पोक (छोटे स्थानों) तक जाएगा। यहां, हब का आशय भारत के सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों से है और स्पोक का आशय व्यक्तिगत रूप से छात्रों से है जोकि डिजिटल मोड के माध्यम से ज्ञान के वितरण के लाभार्थी होंगे। यह डिजिटल विश्वविद्यालय सीखने – सिखाने की प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए आईएसटीई मानकों का पालन करेगा। मूल बात यह है कि प्रत्येक हब को एक अत्याधुनिक आईसीटी प्रणाली विकसित करने की जरूरत होगी। इस योजना की खूबी यह है कि इस प्रकार के हब से निकलने वाला वाला ज्ञान विभिन्न भारतीय भाषाओं में होगा।
एक डिजिटल या आभासी विश्वविद्यालय द्वारा अपनाए जाने वाले शिक्षा के विभिन्न तरीकों में दूरस्थ शिक्षा से लेकर सीधे प्रसारित, संवादात्मक कक्षाओं तक शामिल होते हैं जहां छात्र शिक्षक के साथ सीधा संवाद करते हैं। सीखने के एक अनूठे माहौल में, छात्रों को अपनी तरह के पाठ्यक्रमों में से एक समय सीमा के भीतर पूरा करने के लिए असाइनमेंट दिए जाते हैं। छात्र अपनी गति से असाइनमेंट पूरा करते हैं और इससे संबंधित बातचीत डिस्कशन बोर्ड, ब्लॉग, विकी आदि तक सीमित होती है। इसके उलट, समकालिक ऑनलाइन पढ़ाई वास्तविक समय में होती है, जिसमें शिक्षक और छात्र सभी एक साथ ऑनलाइन संवाद करते हैं। यह पढ़ाई लिखित (टेक्स्ट), वीडियो, ऑडियो या सभी मोड में होती है। कक्षा के निर्धारित समय के अलावा, आमतौर पर अतिरिक्त कार्य पूरे करने होते हैं। इसलिए ये पाठ सामाजिक रूप से निर्मित होते हैं। मेरे विचार से, प्रस्तावित डिजिटल विश्वविद्यालय को विविध किस्म की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में रहने वाले विभिन्न वर्गों के छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऑनलाइन शिक्षण के सभी तीन मॉडलों को अपनाना चाहिए। इसका एक अतिरिक्त लाभ यह है कि छात्र कभी भी बिना कहीं गए अपने घरों से स्नातक कर सकते हैं। इसके अलावा, ऑनलाइन संसाधन एक पुस्तकालय के तौर पर कार्य करते हैं और ऑनलाइन अध्ययन सामग्री तैयार करने की सुविधा के जरिए पाठ्यपुस्तक संबंधी जरूरतों को भी पूरा किया जाता है।
हालांकि, सावधानी बरतने की बात यह है कि ऑनलाइन शिक्षण इकोसिस्टम में शिक्षार्थियों का ध्यान लगातार उच्च स्तर पर बनाए रखना अत्यंत कठिन हो जाता है और इस प्रकार वर्तमान स्वरुप में यह शिक्षण-प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण हो जाती है। शिक्षकों को छात्रों का ध्यान स्क्रीन पर केंद्रित रखने के लिए प्रौद्योगिकी-सक्षम रचनात्मक तरीके खोजने होंगे, क्योंकि छात्र अपने घर के आरामदायक वातावरण में होते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर शिक्षण-सामग्री और छोटे अवकाश; छात्रों के ध्यान को केन्द्रित बनाये रखने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, वर्तमान शिक्षण-प्रक्रिया के वातावरण को, शिक्षकों और छात्रों को नुकसान से बचाने और इसे क्लासरूम जैसा आपसी बातचीत पर आधारित बनाने के लिए अत्यधिक अनुशासित और विषय पर केंद्रित होना चाहिए। कठिन पाठों को सरल बनाकर खेल के रूप में प्रस्तुत करने के माध्यम से डिजिटल शिक्षार्थियों को प्रभावी ढंग से जोड़ा जा सकता है। यह प्रक्रिया छात्रों के सीखने के अनुभव में स्पष्टता और आनंद लाती है। कठिन पाठों को सरल बनाते हुए खेल के रूप में प्रस्तुतीकरण छात्रों की आंतरिक प्रेरणा को बढ़ाने में भी सहायता कर सकता है, जिससे शिक्षण के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी।
इस प्रकार, एक डिजिटल विश्वविद्यालय; राष्ट्र के लिए शिक्षण प्रक्रिया को एकीकृत करने, डिजिटल समावेश की सुविधाओं को साकार करने और समानता के आधार पर अमीर एवं गरीब के भविष्य का निर्माण करने का बड़ा अवसर हो सकता है। हालांकि, डिजिटल विश्वविद्यालय का कार्य केवल पारंपरिक पाठ्यक्रम सामग्री को डिजिटल रूप में परिवर्तित करने और ऑनलाइन तरीके के शिक्षण तक सीमित नहीं होना चाहिए। पाठ्यक्रम सामग्री को डिजिटल रूप में पेश करना, केवल डेटा या जानकारी की प्रस्तुति के समान है, यह जाने बिना कि इसका किस रूप में उपयोग किया जाना है। विश्लेषण, संश्लेषण, अनुमान करना, निष्कर्ष को सुदृढ़ करना, अनुप्रयोग क्षमता, तैयार की गयी शिक्षण-सामग्री का सत्यापन और पाठ्यक्रम के मध्य में सुधार आदि शिक्षा-प्राप्ति के चक्र को पूरा करते हैं। इसे कैसे सुनिश्चित किया जाए, यह ऑनलाइन शिक्षण प्रक्रिया की सबसे बड़ी चुनौती है। शिक्षा-प्राप्ति के हाइब्रिड मॉडल का रचनात्मक उपयोग इस कमी को दूर करने में सहायक हो सकता है। शिक्षा-प्राप्ति का हाइब्रिड मॉडल, जैसी आम धारणा है, केवल ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम के मिश्रण पर आधारित शिक्षण प्रक्रिया तक सीमित नहीं है। यह वास्तव में व्याख्यान, विशेष कक्षाएं, समूह चर्चा, वाद-विवाद, छात्रों की संगोष्ठी, गृह कार्य, शोध प्रबंध, प्रशिक्षण (इंटर्नशिप), मामला आधारित अध्ययन (केस स्टडी), नीति निर्माण, परियोजना मूल्यांकन, क्षेत्र अध्ययन, सर्वेक्षण, भ्रमण, वर्चुअल प्रयोगशालाओं आदि के उपयोग पर आधारित शिक्षा-विज्ञान एक उपयुक्त सम्मिश्रण है, ताकि शिक्षार्थियों का क्षमता निर्माण हो सके। डिजिटल विश्वविद्यालय में, यदि सावधानी से इसकी अवधारणा तैयार की जाती है और इसे आगे बढ़ाया जाता है, वर्तमान शिक्षण प्रणाली को एनईपी 2020 के परिकल्पित रूप में बदलने की क्षमता है।
ये लेखक के निजी विचार हैं।
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डिजिटल विश्वविद्यालय: शिक्षा का एकीकरण, समावेशन पर अमल
- k9bharat
- February 21, 2022
- 11:12 pm
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