30 से 40% किसानों के द्वारा कृषि समन्वयक को देना पड़ता है नजराना।
तब जाकर किसानों को मिलता है इनपुट अनुदान की राशि।
मामला खानपुर प्रखंड कृषि कार्यालय की है जहां कृषि समन्वयक राजीव कुमार के द्वारा कृषि इनपुट के नाम किसानों से गलत तरीके से पैसे की वसूली धड़ल्ले से कि जा रही है अगर किसान अपनी इनपुट लेने के लिए कृषि समन्वयक से काम करवाते हैं तो उस एवज में उन्हें इनपुट राशि का करीब 30 से 40% तक का राशि चुकाना पड़ रहा है अगर किसान नजराना देने से इंकार कर गया तो उनके पेपर को समन्वयक के द्वारा रोक दी जाती है या फिर रद्दी के टोकरी में आवेदन को फेक दिया जाता है या फिर फाइनल रिपोर्ट तक जाते जाते मामला लटक जाता है और किसानों के खाते पर पैसा नहीं पहुंच पाता है जिसके कारण भूमि मालिक किसानों को कृषि कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है बात वहां भी नहीं बनती है तो लाचार बेबस किसान आखिर उन समन्वयक के तलवे चाटने को मजबूर हो हीं जाते है जिसके बाद मिलने बाली इनपुट अनुदान की राशि मिलने से पुर्व हीं 40 से 50% राशि को पहले समन्वयक को भुगतान करना पड़ जाता है तब जाकर उनके खाते पर पैसा आता है तत्कालीन मामला खानपुर प्रखंड के खानपुर उत्तरी पंचायत का है जहां के कृषि समन्वयक राजीव कुमार हैं जो आज तक अपने पंचायत के कृषि कार्यालय भवन में नहीं बैठे हैं और ना हीं किसी किसान का फोन उठाते हैं क्योंकि उनका सारा काम उनके द्वारा बहाल किए गए दर्जनों बिचौलियों के द्वारा हीं होता है दर्जनों किसानों ने समन्वयक पर आरोप लगाते हुए कहा कि कृषि समन्वयक के द्वारा वैसे लोगों को इनपुट अनुदान की राशि दिया गया है जिसके पास खेती करने योग्य भूमि नहीं है और ना ही वह किसी भूमि दाता से खेत लेकर उसमें खेती किए हैं फिर भी उन किसानों को उस इनपुट का लाभ देखकर सरकारी पैसा देने के एवज में 40 से 50% राशि की रिकवरी कर ली जाती है क्योंकि वहां वैसे वैसे किसानों को यह समझ में आता है कि सरकार द्वारा अगर ₹20 हजार रूपए दी जाती है जिसमे से ₹10 हजार रूपए खर्च करने के बावजूद भी मेरे खाते में ₹10 हजार शेष रह जाता है तो इसमें क्या बुराई है। वैसे वैसे किसान कृषि इनपुट का 40 से 50% घूस के तौर पर कृषि समन्वयक को दे देते हैं जिससे समन्वयक मालामाल हो रहे हैं जहां सड़कार को भी ये महकमे हाकिम चुना लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ते है और वरीय पदाधिकारी भी इस पर जांच करना मुनासिब नहीं समझते क्योंकि वह पैसे भी आम किसानों के खून पसीने का होता है जो किसान किसी न किसी तरीके से सरकार को टैक्स के रूप में जमा करती है। लेकिन वास्तविक किसान जो कई एकड़ में अपनी खेती कर अपना जीवन गुजर-बसर करते हैं और वह अनुदान के लिए अप्लाई करते हैं तो उनके पेपर को पास करने के लिए कृषि समन्वय के द्वारा मोटी रकम मांगी जाती है पैसे नहीं देने पर उनके आवेदन को रद् कर दिया जाता है या रद्दी की टोकरी में फेंक दी जाती है जिसके कारण वास्तविक किसानों को सरकारी कोई लाभ नहीं मिल पाता है वास्तविक किसान अपनी भूमि के बदौलत ताकतवर होते हैं जिनके द्वारा कमीशन नहीं दिया जाता है जिसके कारण उन्हें इनपुट अनुदान की राशि नहीं मिल पाता है इसको लेकर दर्जनों किसानों ने खानपुर पंचायत के मुखिया अरुण कुमार सिंह कुशवाहा से मिलकर अपनी समस्या सुनाएं। जिसके बाद मुखिया अरुण कुमार कुशवाहा ने तत्काल प्रखंड कृषि पदाधिकारी अखिलेश कुमार को पंचायत भवन पर बुलाकर किसानों की समस्या से अवगत कराया एवं एक लिखित आवेदन कृषि समन्वयक राजीव कुमार के खिलाफ प्रखंड कृषि पदाधिकारी खानपुर को देते हुए मामले की उच्च स्तरीय जांच कराते हुए अविलंब समन्वयक पर कार्रवाई करने की मांग की है एवं पंचायत भवन में बने कृषि कार्यालय में सभी कृषि पदाधिकारी को उपस्थित होकर किसानों की समस्या को ससमय सुनने की मांग कि है।
कृषि पदाधिकारी ने कहा। मुखिया व किसानों के द्वारा एक लिखित आवेदन दी गई है मामले की जांच कर अविलंब कार्रवाई के लिए जिला कृषि पदाधिकारी को लिखी जाएगी।

